US India Defense Agreement 2025: भारत और अमेरिका के बीच रक्षा संबंधों को नई दिशा देने वाला एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। 31 अक्टूबर 2025 को मलेशिया के कुआलालंपुर में आयोजित आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM-Plus) के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अमेरिकी युद्ध सचिव पीट हेगसेथ के साथ 10 साल के रक्षा फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता टैरिफ विवाद के साये में हुआ, जहां अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने का फैसला किया था, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ गया। फिर भी, यह डील दोनों राष्ट्रों की रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने का संकेत देती है।

आइए, इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानते हैं कि यह समझौता क्या है, इसके पीछे की कहानी क्या है, और इससे भारत-अमेरिका संबंधों पर क्या असर पड़ेगा।
US India Defense Agreement 2025: रक्षा सौदों पर क्यों पड़ा असर?
अगस्त 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाली सरकार ने भारतीय सामानों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के उद्देश्य से था। इस कदम से भारत के आईटी, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्र प्रभावित हुए। रक्षा क्षेत्र में भी इसका असर दिखा—भारत ने अमेरिका से स्ट्राइकर कॉम्बैट व्हीकल्स (जनरल डायनामिक्स), जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइल्स (रेथियॉन और लॉकहीड मार्टिन) और छह बोइंग P-8I रिकॉनिसेंस एयरक्राफ्ट (3.6 अरब डॉलर का सौदा) खरीदने की योजना को स्थगित कर दिया।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का वाशिंगटन दौरा, जो इन सौदों की घोषणा के लिए तय था, रद्द हो गया। सूत्रों के अनुसार, यह पहली ठोस प्रतिक्रिया थी जो भारत ने टैरिफ विवाद पर दिखाई। लेकिन अब, कुआलालंपुर में हुई द्विपक्षीय बैठक ने रक्षा सहयोग को पटरी पर ला दिया। दोनों पक्षों ने सहमति जताई कि टैरिफ मुद्दे पर बातचीत जारी रहेगी, लेकिन रक्षा साझेदारी को अलग रखा जाएगा।
10 साल के रक्षा फ्रेमवर्क का पूरा विवरण: क्या-क्या शामिल?
यह नया फ्रेमवर्क, जिसे ‘US-India Major Defence Partnership Framework 2025’ कहा जा रहा है, अगले दशक के लिए रक्षा सहयोग का रोडमैप तैयार करता है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह दस्तावेज रणनीतिक सहयोग को गहरा करने के लिए एक एकीकृत विजन प्रदान करता है। मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- सूचना साझा और समन्वय: दोनों देशों के बीच खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान को बढ़ावा, खासकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में।
- तकनीकी सहयोग: संयुक्त रक्षा उत्पादन, ड्रोन, मिसाइल सिस्टम और साइबर सिक्योरिटी पर फोकस। भारत के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को अमेरिकी कंपनियों के साथ जोड़ा जाएगा।
- क्षेत्रीय स्थिरता: चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच, क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के तहत संयुक्त अभ्यास और नौसैनिक गश्त को मजबूत करना।
- नीति दिशा: अगले 10 वर्षों में रक्षा व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य, जिसमें ऑफसेट क्लॉज के तहत अमेरिकी फर्मों को भारत में निवेश बढ़ाना शामिल।
राजनाथ सिंह ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा, “यह समझौता हमारी बढ़ती रणनीतिक निकटता का संकेत है और रक्षा को द्विपक्षीय संबंधों का प्रमुख स्तंभ बनाए रखेगा।” वहीं, पीट हेगसेथ ने इसे “क्षेत्रीय स्थिरता और निरोध के लिए आधारशिला” बताया। यह फ्रेमवर्क 2015 के पिछले समझौते को अपडेट करता है, जो अब समाप्त हो चुका है।
समझौते के प्रमुख लाभ: भारत के लिए क्या फायदे?
टैरिफ तनाव के बावजूद यह डील भारत के रक्षा आधुनिकीकरण को गति देगी। कुछ प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
| लाभ का क्षेत्र | विवरण |
|---|---|
| रक्षा आयात विविधीकरण | अमेरिका से सस्ते और उन्नत हथियार, रूस पर निर्भरता कम होगी। |
| संयुक्त उत्पादन | बोइंग और लॉकहीड जैसी कंपनियां भारत में फैक्टरियां लगाएंगी, रोजगार सृजन। |
| इंडो-पैसिफिक सुरक्षा | चीन के खिलाफ मजबूत मोर्चा, संयुक्त सैन्य अभ्यास बढ़ेंगे। |
| तकनीकी हस्तांतरण | एआई, क्वांटम और स्पेस डिफेंस पर सहयोग। |
विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में मजबूत खिलाड़ी बनाएगा। हालांकि, टैरिफ मुद्दा अनसुलझा है, इसलिए भविष्य में व्यापार वार्ताओं पर नजर रहेगी।
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टैरिफ विवाद और रक्षा डील: क्या संतुलन संभव?
टैरिफ विवाद ने अगस्त से दोनों देशों के बीच ठंडक पैदा की थी। भारत ने अमेरिकी कृषि उत्पादों पर जवाबी टैरिफ लगाने की
धमकी दी, लेकिन रक्षा क्षेत्र को इससे अलग रखा। कुआलालंपुर बैठक में दोनों मंत्रियों ने सहमति जताई कि आर्थिक मुद्दे रक्षा
सहयोग को प्रभावित न करें। हेगसेथ ने भारत को “प्राथमिकता वाले साझेदार” बताया, जबकि सिंह ने इंडो-पैसिफिक में “खुला
और नियम-आधारित क्षेत्र” सुनिश्चित करने पर जोर दिया। यह डील दिखाती है कि भू-राजनीतिक हित आर्थिक विवादों पर भारी
पड़ सकते हैं।
निष्कर्ष
US-India रक्षा समझौता 2025 टैरिफ विवाद के बीच एक सकारात्मक कदम है, जो दोनों देशों की रणनीतिक प्रतिबद्धता
को रेखांकित करता है। राजनाथ सिंह के हस्ताक्षर से न सिर्फ रक्षा सहयोग मजबूत होगा, बल्कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति
और स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, टैरिफ जैसे आर्थिक मुद्दों का समाधान जरूरी है ताकि साझेदारी बिना बाधा के
आगे बढ़े। आने वाले वर्षों में यह फ्रेमवर्क भारत को सैन्य रूप से आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। कुल
मिलाकर, यह डील द्विपक्षीय संबंधों का नया अध्याय खोलती है, जहां सहयोग चुनौतियों पर हावी होता दिख रहा है।
FAQ: US-India रक्षा समझौता 2025 से जुड़े सवाल
1. यह 10 साल का रक्षा फ्रेमवर्क कब और कहां हस्ताक्षरित हुआ? यह समझौता 31 अक्टूबर 2025 को मलेशिया के
कुआलालंपुर में आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक के दौरान हस्ताक्षरित हुआ।
2. टैरिफ विवाद का इससे क्या संबंध है?
अगस्त 2025 में अमेरिका द्वारा भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगाने से रक्षा सौदे प्रभावित हुए थे, लेकिन यह डील
सहयोग को पटरी पर लाती है।
3. समझौते में कौन-कौन से क्षेत्र शामिल हैं? सूचना साझा, तकनीकी सहयोग, संयुक्त उत्पादन और इंडो-पैसिफिक
सुरक्षा पर फोकस है।
4. भारत को इससे क्या लाभ मिलेगा? रक्षा आयात विविधीकरण, संयुक्त उत्पादन से रोजगार और तकनीकी हस्तांतरण
जैसे फायदे होंगे।
5. भविष्य में क्या चुनौतियां हो सकती हैं? टैरिफ विवाद अनसुलझा रहने से आर्थिक तनाव बढ़ सकता है, लेकिन रक्षा
सहयोग अलग रहेगा।





