Sanchar Saathi Debate: भारतीय टेलीकॉम सेक्टर में एक नया विवाद उफान पर है। दूरसंचार विभाग (DoT) ने हाल ही में सभी स्मार्टफोन निर्माताओं को निर्देश दिया है कि वे नए फोनों में ‘संचार साथी’ ऐप को पूर्व-स्थापित करें। यह ऐप, जो 2023 से सक्रिय है, फोन चोरी रोकने, फर्जी कॉल्स रिपोर्ट करने और साइबर फ्रॉड से बचाव के लिए डिजाइन किया गया है।

लेकिन विपक्षी दलों और नेटिजनों के बीच यह बहस का केंद्र बन गया है, खासकर कॉल और मैसेज ट्रैकिंग के
आरोपों के कारण। क्या यह वाकई गोपनीयता पर हमला है, या महज एक सुरक्षा उपकरण? आइए, इसकी
गहराई में उतरते हैं।
Sanchar Saathi Debate: संचार साथी ऐप क्या है और यह कैसे काम करता है?
संचार साथी DoT की एक नागरिक-केंद्रित पहल है, जो मोबाइल यूजर्स को सशक्त बनाने का दावा करती है।
इसकी वेबसाइट और ऐप के जरिए यूजर्स निम्नलिखित सुविधाएं इस्तेमाल कर सकते हैं:
- चाक्षु सुविधा: संदिग्ध फ्रॉड कॉल्स, मैसेज या वेब लिंक्स को रिपोर्ट करें। यह DoT को साइबर क्राइम रोकने में मदद करता है।
- खोया फोन ट्रैकिंग: IMEI नंबर से चोरी या खोए फोन को ब्लॉक करें। अब तक 20 लाख से ज्यादा चोरी फोन ट्रेस हो चुके हैं, जिनमें से 7.5 लाख मालिकों को लौटाए गए।
- सिम कनेक्शन चेक: अपने नाम पर रजिस्टर्ड कितने मोबाइल नंबर हैं, यह जांचें। इससे फर्जी कनेक्शन रोकने में सहायता मिलती है।
- स्पैम ब्लॉक: फर्जी या अंतरराष्ट्रीय संदिग्ध कॉल्स को रिपोर्ट करें।
ऐप एंड्रॉयड और iOS दोनों पर उपलब्ध है। 28 नवंबर 2024 को जारी DoT के आदेश के मुताबिक, सभी नए फोन
(2G से 5G तक) में यह ऐप पहले से इंस्टॉल होना जरूरी है। मौजूदा फोनों में OTA (ओवर-द-एयर) अपडेट के जरिए
इसे जोड़ा जाएगा। कंपनियों को 90 दिनों में अनुपालन और 120 दिनों में रिपोर्ट जमा करनी होगी। स्मार्टफोन दिग्गज
जैसे सैमसंग, एप्पल, शाओमी और वीवो को यह निर्देश लागू करना पड़ेगा।
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सरकार का कहना है कि यह कदम IMEI दुरुपयोग रोकने और साइबर फ्रॉड घटाने के लिए है। आंकड़ों के लिहाज से,
ऐप ने 1.75 करोड़ फर्जी मोबाइल कनेक्शन काटे हैं और 42 लाख से ज्यादा ब्लैकलिस्टेड डिवाइस रोके हैं।
विवाद की शुरुआत: कॉल-मैसेज ट्रैकिंग के दावे क्यों भड़काए आग?
विवाद तब भड़का जब विपक्ष ने ऐप को ‘जासूसी उपकरण’ करार दिया। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने इसे ‘स्नूपिंग
ऐप’ कहा और आरोप लगाया कि यह नागरिकों की गोपनीयता पर ‘हमला’ है। उन्होंने कहा, “यह देश को तानाशाही
की ओर धकेलने वाला कदम है।” दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इसे ‘व्यक्तिगत गोपनीयता पर सीधा
प्रहार’ बताते हुए आदेश वापस लेने की मांग की। राज्यसभा में कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी ने एडजर्नमेंट मोशन दाखिल
कर चर्चा की मांग की।
विपक्ष का मुख्य तर्क: ऐप स्टोर लिस्टिंग में यह कैमरा, कॉल लॉग, मैसेज, नेटवर्क इंफो और वाइब्रेशन कंट्रोल जैसी
परमिशन मांगता है। क्या यह कॉल रिकॉर्डिंग या मैसेज पढ़ने की क्षमता देता है? कई यूजर्स सोशल मीडिया पर चिंता
जता रहे हैं कि पूर्व-स्थापित ऐप को डिसेबल न करने का प्रावधान गोपनीयता कानूनों का उल्लंघन है। पेगासस जैसे
पुराने जासूसी कांडों का हवाला देकर विपक्ष ने इसे ‘बिग ब्रदर’ टूल कहा।
सिविल सोसाइटी और टेक एक्सपर्ट्स भी सतर्क हैं। वे कहते हैं कि डिजिटल सिक्योरिटी जरूरी है, लेकिन सरकारी
ऐप्स में ट्रांसपेरेंसी की कमी संदेह पैदा करती है।
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सरकार की सफाई: ट्रैकिंग के दावे झूठे, ऐप वैकल्पिक है
सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। संचार मंत्री ज्योतिरादitya सिंधिया ने स्पष्ट कहा, “संचार साथी
बिल्कुल वैकल्पिक है। अगर आप नहीं चाहें, तो डिलीट कर दें। रजिस्ट्रेशन न करें, कोई समस्या नहीं।” उन्होंने ऐप
को ‘उपभोक्ता सुरक्षा का उपकरण’ बताया, जो फ्रॉड रोकने में ‘महान सेवा’ कर रहा है।
बीजेपी सांसद संबित पात्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जोरदार बचाव किया: “क्या सरकार जासूसी करना चाहती है? नो-नो-नो!
यह ऐप आपके मैसेज नहीं पढ़ सकता, न कॉल्स सुन सकता है – न आने वाली, न जाने वाली। यह निजी डेटा तक पहुंच
नहीं बनाता।” उन्होंने विपक्ष पर तंज कसा, “जो फोन से गलत काम करते हैं, वही घबरा रहे हैं। ईमानदार यूजर को कोई
डर नहीं।”
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने भी कहा, “विपक्ष मुद्दे ढूंढ रहा है। संसद में बहस होगी, लेकिन यह सुरक्षा के लिए है।” सरकार
का दावा है कि ऐप केवल IMEI ट्रैकिंग और रिपोर्टिंग के लिए है, न कि सर्विलांस के लिए।
संचार साथी का असर: आंकड़े जो बताते हैं सच्चाई
विवाद के बीच आंकड़े सरकार के पक्ष में बोलते हैं। मई 2023 से लॉन्च होने के बाद:
- 26 लाख से ज्यादा खोए/चोरी फोन ट्रेस।
- 1.75 करोड़ फर्जी कनेक्शन डिस्कनेक्ट।
- लाखों यूजर्स ने चाक्षु के जरिए फ्रॉड रिपोर्ट किए।
टेक इंडस्ट्री के लिए यह चुनौतीपूर्ण है। कंपनियां 90 दिनों में अनुपालन करेंगी, लेकिन यूजर चॉइस पर जोर दे रही हैं।
एक्सपर्ट्स सुझाव देते हैं कि ऐप को ‘सीटबेल्ट’ की तरह देखें – सुरक्षा के लिए, लेकिन जबरदस्ती नहीं।
निष्कर्ष: संतुलन की जरूरत – सुरक्षा बनाम गोपनीयता
संचार साथी विवाद डिजिटल भारत की दोहरी तलवार को उजागर करता है: एक तरफ साइबर क्राइम से लड़ाई, दूसरी
तरफ निजता का अधिकार। सरकार के दावे सही लगते हैं कि यह ट्रैकिंग टूल नहीं, बल्कि प्रिवेंटिव शील्ड है। लेकिन
विपक्ष की चिंताएं भी निराधार नहीं – परमिशन और ट्रांसपेरेंसी पर स्पष्टता जरूरी है। अंततः, यूजर्स को विकल्प मिलना
चाहिए। अगर ऐप वाकई सहायक साबित होता है, तो यह फ्रॉड-फ्री इंडिया की दिशा में बड़ा कदम होगा। अन्यथा,
गोपनीयता बहस और तेज हो सकती है। क्या आप ऐप इंस्टॉल करेंगे? सोचिए!





