हाईकोर्ट फैसला 2025: संविदा कर्मचारी लंबे समय से सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, लेकिन अक्सर उन्हें स्थायी नौकरी के लाभ से वंचित रखा जाता है। हाल के वर्षों में विभिन्न हाईकोर्ट ने ऐसे मामलों पर विचार किया है, जहां कर्मचारियों की लंबी सेवा अवधि को आधार बनाकर नियमितीकरण का रास्ता खोला गया।

इस लेख में हम पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के हालिया फैसलों पर चर्चा करेंगे, जो संविदा कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण
संदर्भ बन सकते हैं। यहां हम केस की पृष्ठभूमि, अदालत के तर्क, आदेश और प्रभावों को विस्तार से समझेंगे।
हाईकोर्ट फैसला 2025: संविदा कर्मचारियों की समस्या क्या है?
भारत में लाखों संविदा कर्मचारी विभिन्न विभागों जैसे शिक्षा, परिवहन और स्वास्थ्य में कार्यरत हैं। ये कर्मचारी अस्थायी
आधार पर नियुक्त होते हैं, लेकिन कई बार दशकों तक अपनी सेवाएं जारी रखते हैं। मुख्य समस्या यह है कि उन्हें स्थायी
कर्मचारियों की तरह वेतन, पेंशन, प्रमोशन और अन्य लाभ नहीं मिलते। अक्सर सरकारें या संस्थाएं उन्हें नियमित करने
से इनकार कर देती हैं, जिससे असमानता और असुरक्षा की स्थिति पैदा होती है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने ऐसे दो प्रमुख
मामलों में हस्तक्षेप किया, जहां कर्मचारियों की लंबी सेवा को मान्यता दी गई।
एक मामले में पंजाब रोडवेज (पीआरटीसी) के दो कर्मचारी शामिल थे, जो 1979 और 1982 से भाग-समय के रूप में
कार्यरत थे, लेकिन वास्तव में पूर्णकालिक जिम्मेदारियां निभा रहे थे।
दूसरे मामले में सर्व शिक्षा अभियान के तहत कार्यरत शिक्षक थे, जिन्होंने 10 वर्ष से अधिक की सेवा पूरी की थी।
इन मामलों ने संविदा व्यवस्था की कमियों को उजागर किया।
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हाईकोर्ट के फैसलों की पृष्ठभूमि
पहला मामला पीआरटीसी के कर्मचारियों से जुड़ा था। याचिकाकर्ता सुरिंदर सिंह और राजेंद्र प्रसाद ने अदालत में याचिका
दायर की, जिसमें उन्होंने अपनी सेवाओं को नियमित करने की मांग की। वे बरनाला डिपो में पानी वितरण के कार्य में लगे
थे, लेकिन दशकों से बिना स्थायी पद के काम कर रहे थे। उन्होंने पंजाब सरकार की 1999, 2001 और 2006 की नीतियों
का हवाला दिया, जो तीन या दस वर्ष की सेवा वाले कर्मचारियों को नियमित करने की अनुमति देती हैं।
दूसरा मामला चंडीगढ़ प्रशासन के तहत सर्व शिक्षा अभियान के शिक्षकों का था। इन शिक्षकों ने लिखित परीक्षा, साक्षात्कार
और चिकित्सा जांच के माध्यम से नियुक्ति प्राप्त की थी।
वे कक्षाएं पढ़ाने से लेकर प्रशासनिक कार्यों तक सब कुछ संभालते थे, लेकिन केंद्र सरकार ने उनके नियमितीकरण के
प्रस्तावों को बार-बार अस्वीकार कर दिया।
इन मामलों में कर्मचारियों ने संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 16 (सार्वजनिक रोजगार में अवसर
की समानता) का उल्लेख किया, जो असमानता को रोकते हैं।
अदालत के मुख्य तर्क और निर्णय
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने दोनों मामलों में कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाया। जस्टिस हरप्रीत सिंह बरार और जस्टिस
जगमोहन बंसल की पीठ ने कहा कि राज्य एक आदर्श नियोक्ता के रूप में कर्मचारियों का शोषण नहीं कर सकता।
लंबे समय तक अस्थायी पद पर रखना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
पीआरटीसी मामले में अदालत ने उमा देवी केस (सुप्रीम कोर्ट का फैसला) का संदर्भ दिया, जहां कहा गया कि अनियमित
नियुक्तियों को स्थायी नहीं किया जा सकता, लेकिन यहां कर्मचारियों की नियुक्ति वैध थी। अदालत ने पीआरटीसी के तर्क
को खारिज कर दिया कि नीतियां लागू नहीं होतीं क्योंकि कोई पूर्व मांग नहीं की गई थी।
सर्व शिक्षा अभियान के मामले में अदालत ने भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता पर जोर दिया। शिक्षकों की नियुक्ति सुव्यवस्थित
थी, इसलिए उमा देवी का नियम लागू नहीं होता। अदालत ने कहा कि 10 वर्ष से अधिक की सेवा वाले शिक्षकों को स्थायी
बनाना नैतिक और कानूनी दायित्व है।
दोनों फैसलों में अदालत ने सरकारों को निर्देश दिया कि कर्मचारियों को छह सप्ताह के भीतर नियमित किया जाए, अन्यथा
वे स्वतः नियमित माने जाएंगे।
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फैसलों के प्रभाव और निहितार्थ
ये फैसले न केवल पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के संविदा कर्मचारियों के लिए राहत लेकर आए हैं, बल्कि पूरे देश में समान
स्थितियों वाले लाखों कर्मचारियों के लिए एक उदाहरण बन सकते हैं। इससे शिक्षा और परिवहन जैसे क्षेत्रों में स्थिरता आएगी,
क्योंकि सुरक्षित कर्मचारी बेहतर प्रदर्शन कर सकेंगे। अन्य राज्यों में भी नियमितीकरण की मांग बढ़ सकती है, और अदालतें
संवैधानिक सिद्धांतों को मजबूत करेंगी।
हालांकि, ये फैसले विशिष्ट मामलों पर आधारित हैं, इसलिए हर कर्मचारी को अपनी स्थिति की जांच करनी होगी। सरकारों को
अब नीतियां बनाने में सावधानी बरतनी पड़ेगी ताकि शोषण की शिकायतें कम हों।
निष्कर्ष
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के ये फैसले संविदा कर्मचारियों के अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम हैं। वे दिखाते
हैं कि लंबी सेवा और वैध नियुक्ति के आधार पर नियमित नौकरी का दावा किया जा सकता है। कर्मचारियों को अपनी सेवाओं
का रिकॉर्ड रखना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर कानूनी सहायता लेनी चाहिए। ये फैसले समानता के सिद्धांत को लागू करने
में मदद करेंगे, जिससे सरकारी व्यवस्था अधिक न्यायपूर्ण बनेगी।
FAQ: हाईकोर्ट फैसला 2025
1. संविदा कर्मचारी नियमित नौकरी के लिए कब पात्र होते हैं?
संविदा कर्मचारी आमतौर पर 3 से 10 वर्ष की निरंतर सेवा के बाद पात्र हो सकते हैं, लेकिन यह राज्य की नीतियों और
अदालती फैसलों पर निर्भर करता है। जैसे पंजाब की 1999-2006 नीतियां।
2. हाईकोर्ट के फैसले किस आधार पर दिए गए?
फैसले संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 पर आधारित हैं, जो समानता सुनिश्चित करते हैं। अदालत ने शोषण को रोकने और
वैध भर्ती को मान्यता दी।
3. क्या ये फैसले पूरे देश पर लागू होते हैं?
ये फैसले पंजाब-हरियाणा क्षेत्र पर सीधे लागू हैं, लेकिन अन्य अदालतें इन्हें संदर्भ के रूप में उपयोग कर सकती हैं।
4. नियमितीकरण न होने पर क्या करें?
कर्मचारी हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं, अपनी सेवा का प्रमाण और नीतियों का हवाला देकर। कानूनी सलाह लें।
5. क्या केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर भी लागू है?
केंद्र के मामलों में सुप्रीम कोर्ट या संबंधित हाईकोर्ट फैसला लेते हैं, लेकिन समान सिद्धांत लागू हो सकते हैं।





