शिव पार्वती विवाह पर्व :भारत विविधताओं का देश है, जहां हर पर्व अपने आप में एक अनूठी परंपरा को दर्शाता है। ओडिशा
राज्य का सीताल षष्ठी (Sital Sasthi) पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व

भगवान शिव और देवी पार्वती के दिव्य विवाह का उत्सव है, जिसे संबलपुर, झारसुगुड़ा, और अन्य पश्चिमी ओडिशा के
क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
शिव पार्वती विवाह पर्व सीताल षष्ठी
सीताल षष्ठी का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती के आत्मदाह के पश्चात, भगवान शिव गहन तपस्या में लीन हो गए थे। बाद में,
देवी सती ने पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया और कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया। इन दोनों
का विवाह ज्येष्ठ शुक्ल षष्ठी को हुआ था। इसी शुभ दिन को “सीताल षष्ठी” के रूप में मनाया जाता है।
इस पर्व का एक प्रमुख उद्देश्य गर्मी के प्रकोप को शांत करना भी माना जाता है। “सीताल” का अर्थ है शीतलता, और
यह मान्यता है कि भगवान शिव के विवाह के साथ ही वर्षा ऋतु की शुरुआत का संकेत मिलता है।
संबलपुर में उत्सव की भव्यता
संबलपुर शहर में यह उत्सव केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक महाकुंभ बन चुका है। इस पर्व के
दौरान भगवान शिव को वर और पार्वती को वधू के रूप में सजाया जाता है। खास बात यह है कि स्थानीय लोग स्वयं
“पार्वती के माता-पिता” बनकर शादी की जिम्मेदारी निभाते हैं। विवाह की रस्में पारंपरिक हिंदू विधि से संपन्न
होती हैं।
पाँच दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में भव्य बारात, नृत्य, संगीत, और लोक-नाट्य जैसे कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
बारात के दौरान हजारों श्रद्धालु नाचते-गाते शिव की शोभायात्रा में शामिल होते हैं।
सामाजिक एकता का संदेश
सीताल षष्ठी केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और सांप्रदायिक एकता का प्रतीक भी है।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – सभी समुदायों के लोग इस आयोजन में भाग लेते हैं और मिलजुल कर उत्सव मनाते हैं।
निष्कर्ष
सीताल षष्ठी न केवल भगवान शिव और माता पार्वती के पावन विवाह का प्रतीक है, बल्कि यह लोक संस्कृति, भक्ति
और सामाजिक एकता का भी संदेश देता है। संबलपुर की गलियों में जब शिव-बारात निकलती है, तो पूरा शहर
भक्ति और उल्लास में डूब जाता है। यह पर्व हमें हमारी धार्मिक परंपराओं से जोड़ने के साथ-साथ एकता और
प्रेम का पाठ भी पढ़ाता है।