बीएलओ की आखिरी चीख: उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में रहने वाले 38 वर्षीय ब्लॉक लेवल ऑफिसर (BLO) राजेश कुमार (बदला हुआ नाम) ने 28 नवंबर 2025 को अपने घर में फाँसी लगा कर आत्महत्या कर ली। मौत से कुछ घंटे पहले उन्होंने एक लंबा सुसाइड नोट लिखा था जिसमें सिर्फ़ एक लाइन हर किसी का दिल दहला रही है – “मैं जीना तो चाहता हूँ, पर डर के साये में जी रहा हूँ।”

राजेश पिछले 12 साल से BLO के पद पर थे। बाहर से देखने में मामूली सरकारी नौकरी, लेकिन अंदर की हक़ीकत कुछ और ही थी। सुसाइड नोट में उन्होंने एक-एक करके वो तमाम दबाव गिनाए जो पिछले कई महीनों से उन्हें खाए जा रहे थे।
बीएलओ की आखिरी चीख: सुसाइड नोट में लिखी गई प्रमुख बातें
- विधानसभा चुनाव के दौरान लगातार 18-20 घंटे ड्यूटी
- वोटर लिस्ट सुधार, बूथ लेवल प्लानिंग, EVM मूवमेंट – सब कुछ एक ही व्यक्ति पर
- ऊपर से लगातार फोन और धमकियाँ – “अगर एक भी वोटर का नाम छूट गया तो निलंबन पक्का”
- DM ऑफिस और SDM ऑफिस से रोज़ रात 11 बजे तक मीटिंग
- घर में छोटे बच्चे और बीमार पत्नी, लेकिन छुट्टी माँगने पर मिलती थी धमकी
- मानसिक तनाव की दवा ले रहे थे, पर किसी अफसर ने पूछा तक नहीं
नोट के अंत में उन्होंने लिखा था – “मैंने कभी रिश्वत नहीं ली, कभी गलत काम नहीं किया। फिर भी मुझे अपराधी की तरह ट्रीट किया जा रहा है। मैं थक गया हूँ।”
परिवार ने क्या कहा?
परिजनों के अनुसार राजेश पिछले तीन महीने से बहुत परेशान थे। रात को नींद नहीं आती थी, बार-बार कहते थे – “मुझे मार डालेंगे ये लोग।” आत्महत्या से दो दिन पहले भी उन्होंने SDM साहब को फोन करके कहा था कि “सर, मैं बीमार हूँ, एक दिन की छुट्टी दे दीजिए”, जवाब मिला – “चुनाव के समय छुट्टी का ख्याल दिमाग से निकाल दो।”
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आखिर BLO बनाम प्रशासनिक दबाव का सच क्या है?
उत्तर भारत के लगभग हर जिले में BLO की स्थिति यही है। एक BLO के पास औसतन 1200-1500 वोटर होते हैं। चुनाव के समय इनकी जिम्मेदारी इतनी बढ़ जाती है कि न घर का रहता है न घाट का। कई BLO तो रात में बूथ पर ही सो जाते हैं। ऊपर से राजनीतिक दबाव अलग – “अमुक पार्टी का वोटर बढ़ाओ, फलाने का नाम काटो”। जो मना करता है, उसका ट्रांसफर या निलंबन पक्का।
क्या ये पहला मामला है?
नहीं।
- 2022 में बिहार के एक BLO ने चुनाव ड्यूटी के दबाव में ज़हर खाकर आत्महत्या की थी
- 2024 में राजस्थान में एक BLO ने गोली मार ली थी
- उत्तर प्रदेश में ही पिछले पंचायत चुनाव के दौरान 4 BLO ने आत्महत्या की थी
फिर भी प्रशासनिक महकमा इसे “व्यक्तिगत कारण” बताकर टाल देता है।
अब सवाल ये है – कब तक चलता रहेगा ये सिलसिला?
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जब तक BLO को सिर्फ़ “चपरासी लेवल” का कर्मचारी समझा जाएगा, तब तक ऐसे मामले आते रहेंगे। जरूरत है सिस्टम में सुधार की:
- चुनाव ड्यूटी के लिए अलग से ट्रेनड स्टाफ रखा जाए
- मानसिक स्वास्थ्य के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था हो
- लगातार 15 दिन से ज्यादा ड्यूटी करने पर अनिवार्य अवकाश
- दबाव बनाने वाले अफसरों पर सख्त कार्रवाई
निष्कर्ष
राजेश कुमार अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी आखिरी चीख हमें बहुत कुछ कह रही है। एक ईमानदार कर्मचारी को अगर अपनी ही नौकरी से मौत का डर सताने लगे, तो समझिए सिस्टम में कुछ गहराई तक सड़ांध है। राजेश की मौत कोई व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की नाकामी है। उम्मीद है उनकी यह चीख ऊपर तक पहुँचेगी और अगले राजेश को बचाने के लिए कुछ कदम उठाए जाएँगे।
ॐ शांति।





