माघ मेला 2026: प्रयागराज का संगम नोड़ा, जहां गंगा-यमुना-सारस्वती की त्रिवेणी मिलन से एक अनोखी आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। हर साल माघ मास में लगने वाला यह पवित्र मेला हिंदू धर्म की गहन परंपराओं का जीवंत प्रतीक है। लेकिन 2026 के माघ मेले को लेकर अब एक नया विवाद खड़ा हो गया है। साधु-संतों ने आवाज बुलंद कर दी है कि इस पावन आयोजन की सारी जिम्मेदारियां केवल हिंदू ठेकेदारों को ही सौंपी जाएं। उनका तर्क साफ है – धार्मिक आयोजन की पवित्रता बनाए रखने के लिए समर्पण भाव जरूरी है, जो केवल सनातनी ठेकेदार ही निभा सकते हैं।

आइए, इस मुद्दे की गहराई में उतरते हैं और समझते हैं कि यह मांग क्यों उठी है, इसका ऐतिहासिक संदर्भ क्या है और इससे माघ मेला 2026 कैसे प्रभावित हो सकता है।
माघ मेला 2026: तारीखें, महत्व और तैयारियां
माघ मेला प्रयागराज का एक ऐसा उत्सव है जो मकर संक्रांति से शुरू होकर महाशिवरात्रि तक चलता है। 2026 में यह
मेला 3 जनवरी से आरंभ होगा और लगभग 28 दिनों तक चलेगा। इस दौरान लाखों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में शाही स्नान
के लिए उमड़ेंगे।
प्रमुख स्नान की तिथियां इस प्रकार होंगी:
- मकर संक्रांति स्नान: 14 जनवरी 2026 (मुख्य स्नान, पापों के नाश का प्रतीक)।
- मैघ शीतला स्नान: 29 जनवरी 2026।
- अस्सी संक्रांति स्नान: 12 फरवरी 2026।
- भिश्म सप्तमी स्नान: 13 फरवरी 2026।
- महा शिवरात्रि स्नान: 3 मार्च 2026 (समापन स्नान)।
यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी। कल्पवासी यहां 45 दिनों तक रहकर
तपस्या, दान और ध्यान में लीन रहते हैं। मान्यता है कि संगम स्नान से अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्ति होती है।
2025 के महाकुंभ के बाद यह पहला बड़ा आयोजन होगा, जहां 15-20 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है।
प्रशासन ने पहले ही भूमि समतलीकरण का काम शुरू कर दिया है, जो नवंबर 2025 के पहले सप्ताह में चरम पर
पहुंचेगा। लेकिन इसी तैयारी के बीच साधु-संतों की मांग ने सबका ध्यान खींच लिया है।
साधु-संतों की मांग: हिंदू ठेकेदार ही क्यों?
प्रयागराज में हाल ही में आयोजित एक सभा में जूना अखाड़ा, वैष्णव संप्रदाय और दंडी स्वामी समेत कई संतों ने
एकमत होकर कहा कि माघ मेला क्षेत्र में निर्माण, सफाई, दुकानें और अन्य सुविधाओं का ठेका केवल हिंदू ठेकेदारों
को दिया जाए। श्रृंगवेरपुर पीठाधीश्वर जगद्गुरु शांडिल्य महाराज ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “मक्का-मदीना जैसे पवित्र
\स्थलों पर गैर-मुस्लिमों को प्रवेश नहीं दिया जाता, तो हमारे धार्मिक आयोजन में गैर-सनातनियों को जिम्मेदारी क्यों
सौंपी जाए? इनमें सेवा भाव और समर्पण की कमी रहती है, जो परंपराओं को प्रभावित कर सकती है।”
संतों का कहना है कि सिख, बौद्ध और जैन जैसे अन्य हिंदू पंथों के ठेकेदारों को काम दिया जा सकता है, लेकिन
मुस्लिम या अन्य धर्मों के ठेकेदारों का प्रवेश प्रतिबंधित हो। उनका तर्क है कि मेला क्षेत्र में दुकानें लगाने, शिविर बनाने
और सफाई जैसे कामों में गैर-हिंदू ठेकेदार धार्मिक भावनाओं का अपमान कर सकते हैं। यह मांग केवल ठेकेदारों तक
सीमित नहीं है; संतों ने निष्क्रिय धार्मिक संस्थाओं को भूमि आवंटन रोकने की भी बात कही है। मेला प्रशासन ने इस
पर सख्ती का संकेत दिया है, जहां केवल सक्रिय संस्थाओं को ही जमीन मिलेगी।
यह विवाद 2025 के महाकुंभ से प्रेरित लगता है, जहां भी समान मांगें उठी थीं। संत समाज का मानना है कि ऐसी
नीतियां सनातन संस्कृति की रक्षा करेंगी और आयोजन को अधिक शुद्ध बनाएंगी। हालांकि, कुछ आलोचक इसे
विभाजनकारी बता रहे हैं, लेकिन संतों का जोर पवित्रता पर है।
इस मांग के पीछे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ
माघ मेले की जड़ें प्राचीन हैं। रामचरितमानस के बालकांड में इसका उल्लेख मिलता है, जहां भगवान राम के वनवास
के दौरान प्रयागराज का महत्व बताया गया है। सदियों से यह मेला तपस्वियों, साधुओं और श्रद्धालुओं का केंद्र रहा है।
अखाड़ों की भूमिका हमेशा से प्रमुख रही – जूना अखाड़ा जैसे संगठन आयोजन की कमान संभालते हैं।
आज के दौर में ठेकेदारी का मुद्दा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मेला क्षेत्र में करोड़ों का कारोबार होता है।
गैर-हिंदू ठेकेदारों को काम देने से न केवल आस्था पर सवाल उठते हैं, बल्कि सुरक्षा और स्वच्छता जैसे पहलुओं पर
भी असर पड़ सकता है। संतों ने मिसाल के तौर पर मक्का का जिक्र किया, जहां पूरी व्यवस्था मुस्लिम समुदाय ही
संभालता है। यह तुलना विवादास्पद है, लेकिन संतों के लिए यह धार्मिक संवेदनशीलता का प्रतीक है।
प्रशासन की ओर से अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन मेला प्राधिकरण ने संकेत दिए हैं कि संतों
की भावनाओं का सम्मान किया जाएगा। भूमि वितरण नवंबर 2025 से शुरू होगा, और तब तक यह मुद्दा गर्माता रहेगा।
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निष्कर्ष: आस्था और व्यवस्था का संतुलन जरूरी
माघ मेला 2026 न केवल एक धार्मिक उत्सव होगा, बल्कि सनातन धर्म की एकता और पवित्रता का प्रतीक भी बनेगा।
साधु-संतों की यह मांग हिंदू ठेकेदारों को जिम्मेदारी देने की है, जो सतह पर विवादास्पद लगे, लेकिन गहराई से देखें तो
आस्था की रक्षा का प्रयास है। हालांकि, आयोजन की सफलता के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा – चाहे
वह प्रशासन हो या ठेकेदार।
अंततः, संगम का संदेश तो एकता का ही है। यदि यह मांग पूरी हुई, तो 2026 का माघ मेला और अधिक भव्य और शुद्ध
रूप ले लेगा, जहां करोड़ों श्रद्धालु निश्चिंत होकर पुण्य लाभ उठा सकेंगे। आइए, हम सब मिलकर इस पावन यात्रा का
हिस्सा बनें।
माघ मेला 2026 से जुड़े सामान्य प्रश्न (FAQ)
1. माघ मेला 2026 कब शुरू होगा?
माघ मेला 3 जनवरी 2026 से शुरू होगा और 28 दिनों तक चलेगा, जिसमें प्रमुख स्नान मकर संक्रांति (14 जनवरी)
से महाशिवरात्रि (3 मार्च) तक होंगे।
2. साधु-संतों की मांग क्या है?
संतों ने मांग की है कि मेला क्षेत्र की सारी जिम्मेदारियां – जैसे निर्माण, सफाई और दुकानें – केवल हिंदू ठेकेदारों को
दी जाएं, ताकि धार्मिक पवित्रता बनी रहे।
3. क्या गैर-हिंदू ठेकेदारों पर प्रतिबंध लगेगा?
संतों की मांग के अनुसार, मुस्लिम या अन्य गैर-सनातनी ठेकेदारों का प्रवेश रोका जाए, लेकिन सिख, बौद्ध जैसे हिंदू
पंथों को अनुमति दी जा सकती है।
4. माघ मेला का धार्मिक महत्व क्या है?
यह मेला कल्पवास, तपस्या और संगम स्नान पर केंद्रित है। मान्यता है कि यहां स्नान से पाप नष्ट होते हैं और अश्वमेध
यज्ञ के समान पुण्य मिलता है।
5. क्या निष्क्रिय संस्थाओं को भूमि मिलेगी?
नहीं, मेला प्रशासन ने सख्ती बरतते हुए कहा है कि केवल सक्रिय धार्मिक संस्थाओं को ही जमीन और सुविधाएं
आवंटित की जाएंगी।





